मित्र वही जो विपित्त में काम आये A Friend in need is a Friend Indeed meaning

मित्र वही जो विपित्त में काम आये A Friend in need is a Friend Indeed meaning

मित्र वही जो विपित्त में काम आये A Friend in need is a Friend Indeed meaning

एक से अधिक लोगों का समुदाय जहां पर मनुष्य अपने क्रियाकलाप में संलिप्त होता है, समाज कहलाता है इसीलिए महान दार्शनिक अरस्तू ने कहा है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अर्थात जिस प्रकार जानवर अपने समूह बनाकर रहना पसंद करते हैं उसी प्रकार मनुष्य भैया अपना समूह बनाकर रहना पसंद करता है ।

एक समाज में रहने वाला व्यक्ति उसे समाज में रहने वाले दूसरे व्यक्ति से प्रेम और करुणा का भाव रखता है और इसी प्रेम करुणा के भाव के कारण ही एक संबंध उत्पन्न होता है।

दोस्ती या मित्रता क्या होता है? What is Friendhip?

कहते हैं मित्रता एक ऐसा भाव है जो बालक के बाल्यकाल में खेल के मैदान से उत्पन्न होकर उसके वृद्धावस्था तक उसके साथ रहता है। समाज में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी  प्रकार की समस्याओं से घिरा होता है और वह अपने इन्हीं समस्याओं को साझा करने के लिए एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में होता है जिससे वह अपने हृदय का अंतर्मन की वेदना को उसके समक्ष रख सके।

वह व्यक्ति उसकी इस वेदना को समझ कर उसे सही सलाह एवं उचित रास्ता दिखा सके मनुष्य के हृदय में उत्पन्न होने वाला मित्रता का यह भाव एक प्राकृतिक प्रवृत्ति है । समाज में दो तरह के लोग होते हैं एक अच्छी प्रवृति के जो अपनी सच्चाई और अच्छाई से लोगों में खुशियां बिखेरते हैं तथा एक जो अपने बुरे आचरण से लोगों के मन को ठेस पहुंचाते हैं।

समाज में हमें ऐसे ही अच्छे लोगों से मित्रता करनी चाहिए जो हमारे बुरे वक्त में जब हम किसी मुसीबत में हो तो हमारी मदद करें ना कि उनसे जो हमें ऐसे हालात में अकेला छोड़ कर चले जाएं। वह व्यक्ति जो हमारा सच्चा मित्र होता है वह हमारे साथ हमारे बुरे वक्त में भी वैसे ही व्यवहार करता है जैसे कोई अन्य व्यक्ति हमारे खुशहाली के दिनों में करता है।

कृष्ण और सुदामा के मित्रता की कहानी Krishna Sudama friendship Story in Hindi

ऐसी ही मित्रता का उदाहरण भगवान श्री कृष्ण तथा सुदामा की मित्रता है सुदामा जो कि एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण थे जिनका परिवार बहुत ही गरीबी में जीवन यापन करता था यह इतने गरीब थे कि कई बार तो इनके परिवार को खाली पेट भूखे ही सोना पड़ता था सुदामा अपने बचपन के मित्र जो कि गुरुकुल में उनके साथ शिक्षा ग्रहण किये थे, के बारे में अपनी पत्नी को बताया करते थे कि वह द्वारिका के राजा है और स्वभाव के विनम्र और मिलनसार हैं।

भगवान श्री कृष्ण के बारे में यह सब सुनकर सुदामा की पत्नी ने सुदामा से कहा, की आप एक बार अपने बचपन के मित्र श्री कृष्ण से मिलने में लिए द्वारिका चले जाइए क्या पता कि हमारी इस दरिद्रता की हालत को देखकर तुम्हारी सहायता करें । पत्नी की इन बातों को सुनकर सुदामा ने कहा कि हमारे पास उन्हें उपहार में देने के लिए कुछ भी नहीं है इस बात को सुनकर उनकी पत्नी ने पड़ोस से कुछ चावल उधार मांग कर लायी और सुदामा को दे दिया।

सुदामा जी चावल लेकर द्वारिका की तरफ चल दिए और जब वह द्वारिका पहुंचे तो उनके बचपन के मित्र कृष्ण ने उनका बहुत ही आदर और सत्कार किया। सुदामा जी मिलते समय बहुत ही दुखी थे और वह यह संकोच कर रहे थे कि इतने बड़े व्यक्ति को उपहार स्वरूप यह चावल कैसे दें कृष्ण उनके इस संकोच को समझ गए थे इसीलिए उन्होंने जबरदस्ती उनसे चावल की पोटली छीन ली।

यह सब होने के बाद जब सुदामा वापस अपने घर को लौटने लगे क्यों उन्हें लगा, यहां आना व्यर्थ हो गया। श्रीकृष्ण ने तो मेरी कोई सहायता ही नहीं की लेकिन ऐसा नहीं था क्योंकि जब सुदामा अपने घर पहुंचे तो वहां कुटिया की जगह एक महल बना था इस प्रकार एक मित्र ने अपने बचपन के मित्र की सहायता की थी ।

मित्रता वह नहीं जो अपने स्वार्थ के लिए अपने मित्र को किसी संकट में छोड़ दे बल्कि मित्रता तो वह है जो मित्र के लिए अपने जीवन को संकट में डाल कर भी अपने मित्र की मदद करता है। जीवन में हमें अच्छे और बुरे मित्र के बीच के अंतर को जानना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि अच्छा मित्र हमें हर प्रकार के धोखे से बचाकर हमें हर प्रकार से लाभ पहुंचाएगा

लेकिन वही एक बुरा मित्र हमारा साथ कब तक देगा जब तक उसका स्वार्थ नहीं निकल जाता और यदि हमने अपने जीवन में एक अच्छे मित्र का साथ मिल जाए तो हमें यह समझना चाहिए कि हमने अपने जीवन की सबसे बड़ी पूंजी अर्जित कर ली है ।

सच्ची मित्रता की पहचान हमारे जीवन के सबसे कठिन समय में होती है जब हमें किसी अपने की आवश्यकता होती है और कोई हमारा मित्र हमारे पास आकर हमारी सहायता करता है, यह कार्य वही मित्र कर सकता है जो हमारा सच्चा हितैषी और परम मित्र हो ।

मित्रता पर शायरी

मित्रता की व्याख्या करते हुए किसी शायर ने क्या खूब लिखा है की –

दोस्ती से कीमती कोई जागीर नहीं होती,
दोस्ती से खूबसूरत कोई तस्वीर नहीं होती,
दोस्ती यूं तो कच्चा धागा है,
मगर इस धागे से मजबूत कोई,
जंजीर नहीं होती।

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