ईस्ट इण्डिया कंपनी का इतिहास East India Company History in Hindi
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना, ब्रिटेन के व्यापारियों के एक समूह जिसका नाम मर्चेंट एडवेंचर था, के द्वारा 1599 में ब्रिटेन में की गई थी। इसके बाद 31 दिसंबर 1600 ईसवीं को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने एक चार्टर पत्र के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत के साथ ही साथ पूर्व के देशों के साथ 21 सालों तक व्यापार करने का एकाधिकार पत्र प्रदान कर दिया।
भारत से व्यापार करने का एकाधिकार पत्र प्राप्त करने के बाद कंपनी ने भारत में अपने व्यापारिक विस्तार के लिए रणनीतियां बनाना प्रारंभ कर दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी रणनीति के अंतर्गत तय किया कि कंपनी सबसे पहले मुगल शासकों से भारत में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त करेंगे। तथा इसके बाद भारत के तटीय क्षेत्रों में अपनी फैक्ट्रियां स्थापित करेंगे।
ईस्ट इण्डिया कंपनी का इतिहास East India Company History in Hindi
अपनी इसी रणनीति को सफल बनाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1603 ईसवी में थॉमस स्टीफन को कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में, मुगल काल के शासक अकबर के दरबार में पेश क्या। भारत से व्यापार करने की अनुमति प्राप्त करने के लिए थॉमस स्टीफन वहा पहुंचा।
परंतु थॉमस स्टीफन मुगल शासक को अपनी बातों को समझाने में असफल रहा क्योंकि उसे फारसी भाषा का ज्ञान नहीं था और इसी कारण मुगल शासक ने कंपनी को भारत में व्यापार करने की अनुमति नहीं प्रदान की। उसके बाद थॉमस स्टीफन ब्रिटेन वापस लौट गया।
इसके बाद कंपनी ने दोबारा कैप्टन हॉकिंस के प्रतिनिधित्व में भारत के लिए ‘हेक्टर’ नाम के जहाज को इंग्लैंड से रवाना किया। जिसका उद्देश्य भारत के साथ सिर्फ व्यापार करना था। कैप्टन हॉकिंस सबसे पहले सूरत के बंदरगाह पर उतरा। ‘सूरत’, उस समय के, भारत के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में से एक था।
1608 ईसवी में कैप्टन हॉकिंस मुगल शासक जहांगीर के दरबार में, भारत में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त करने के लिए, पहुंचा। शासक के दरबार में पहुंच कर कैप्टन हॉकिंस अपने मुगल शासक से फारसी भाषा में बात किया जिससे खुश होकर मुगल शासक जहांगीर ने कैप्टन हॉकिंस को ‘खान’ की उपाधि प्रदान की।
साथ ही साथ सूरत में अस्थाई फैक्ट्री को स्थापित करने की भी अनुमति प्रदान की। इसके बाद जहांगीर ने 1613 ई में, कंपनी द्वारा स्थापित सूरत की फैक्ट्री को वैधानिक अनुमति देकर उसे स्थाई कर दिया। इसके पहले 1611 ई में कंपनी ने भारत के पूर्वी तट पर स्थित मूसलीपटनम में अपनी एक फैक्ट्री स्थापित कर ली थी।
इसके बाद 1615 ई में सर टामस रो भी जहांगीर के दरबार में पहुंचा तथा इसने सूरत, अहमदाबाद, भड़ौच, एवं आगरा में फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति जहांगीर से प्राप्त की। इसीलिए ईस्ट इंडिया कंपनी को पश्चिमी भारत में स्थापित करने का श्रेय सर टॉमस रो को दिया जाता है।
इसके साथ ही 1619 ईसवी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने गुजरात के अहमदाबाद में भी अपनी एक कंपनी स्थापित की। इसके बाद मुगल शासक शाहजहां के शासनकाल में क्षेत्रीय सूबेदारों के द्वारा कंपनी को फैक्ट्री तथा किले स्थापित करने की अनुमति दी गई।
इसी क्रम में 1631 ई में कर्नाटक के गोलकुंडा के सूबेदार ने भी कंपनी को व्यापार करने की अनुमति प्रदान कर दी और 1639 ई में चंद्रगिरी के शासक ने ईस्ट इंडिया कंपनी को मद्रास को पट्टे यानी किराए पर दे दिया। जहां पर कंपनी ने सेंट फोर्ट जॉर्ज नामक किले का निर्माण कराया।
1651 ई में बंगाल के सूबेदार ने कंपनी को चुंगी मुक्त व्यापार करने का अधिकार दे दिया जिससे कंपनी ने हुगली में अपनी फैक्ट्री स्थापित की जो कि कंपनी द्वारा बंगाल में स्थापित होने वाली पहले फैक्ट्री थी।
इसके बाद 1657 ईसवी में मुगल शासक शाहजहां के पुत्रों के बीच, मुगल साम्राज्य के उत्तराधिकार के लिए युद्ध का आरंभ हो गया। जिसके बाद जहां के पुत्र औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को बंदी बना लिया।
21 जुलाई 1658 ई को औरंगजेब ने आगरा में अपना राज्यभिषेक करा कर स्वयं मुगल साम्राज्य का शासक बना। इसी के शासनकाल में 1661 ईसवी में पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन का विवाह ब्रिटिश के राजकुमार चार्ल्स द्वितीय के साथ हो गया।
इसके बाद सन 1667 ई में औरंगजेब ने अंग्रेजों को बंगाल में व्यापार करने की अनुमति भी प्रदान कर दी थी। राजकुमारी की शादी के बाद पुर्तगालियों ने बम्बई में व्यापार करने का अधिकार अंग्रेजों को दे दिया। जिसके बाद चार्ल्स द्वितीय ने सन 1668 ई में मुंबई को 10 पौंड के वार्षिक किराए पर ईस्ट इंडिया कंपनी को प्रदान कर दिया।
इसी के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई में अपनी फैक्ट्री स्थापित की। कंपनी ने अपने साम्राज्य का और अधिक विस्तार करते हुए सन 1670 ई में भारत के पूर्वी तट के ढाका में तथा पश्चिमी तट के कोचीन में अपनी फैक्ट्रियां स्थापित की।
आगे चलकर कंपनी की नीतियों से नाराज होकर मुगल शासक औरंगजेब ने सन 1688 ईसवी में, बंगाल में कंपनी के व्यापारिक अनुमति को निरस्त कर दिया। परंतु इसका प्रभाव नहीं पड़ा। और कंपनी ने सन 1690 ई में कोलकाता में एक और फैक्ट्री स्थापित की और अब मुगल साम्राज्य की नीतियों के कारण, कंपनी को भारत में व्यापार करने में असुविधा होने लगी थी।
जिसके कारण अब कंपनी को भारत में प्रशासनिक अधिकार की भी आवश्यकता महसूस होने लगी जिसके चलते सन 1697 ई में बंगाल के कोलकाता में फोर्ट विलियम नामक किले की स्थापना की। जो कि अंग्रेजों का प्रसासनिक केंद्र बन गया।
1699 ईसवीं में जॉब चारनाक के द्वारा कोलकाता नगर की स्थापना की गई। इसके बाद आगे चलकर सन 1756 ईसवी में बंगाल के सूबेदार सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों की फैक्ट्रियों को बंद करने का आदेश दे दिया तथा उन्हें बंगाल को छोड़ कर फुल्टा (मद्रास) जाने का आदेश दे दिया।
जिसके बाद 23 जून 1757 ईसवी को नवाब सिराजुद्दौला तथा लार्ड क्लाइव के नेतृत्व में कंपनी के मध्य हुआ। इस युद्ध में कंपनी विजयी रही और इसी के बाद कंपनी ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया।
इसके बाद कंपनी ने अपनी सुविधा के लिए 1760 ई में मीरकासिम को बंगाल का नवाब बना दिया। परन्तु मीरकासिम ने अंग्रेजों के विरुद्ध अनेक घोषणाएं की जिससे कंपनी को भारी नुकसान होने लगा। जिसके कारण 1763 में अंग्रेजो ने मीरकासिम को हटाकर फिर से मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया।
इसके बाद 1764 ई में मुगलों और नवाबों तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के मध्य बक्सर का युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध मे कंपनी की सेना का नेतृत्व हेक्टर मुनरो ने किया था। इस युद्ध मे कंपनी को विजय प्राप्त हुई।
इस युद्ध के विजय के बाद कंपनी ने 1765 ई में इलाहाबाद की प्रथम संधि की जिसके द्वारा कंपनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा प्रान्त की दीवानी प्राप्त हुई। इसके तुरंत बाद ही कंपनी ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ इलाहाबाद की दूसरी संधि की जिसके द्वारा कंपनी को भारत में कर मुक्त व्यापार करने का अधिकार दिया गया।
साथ ही साथ कंपनी की सेना को अवध की सुरक्षा के लिए लगाया गया। इसका खर्च अवध के नवाब को देने का प्रावधान किया गया। इस प्रकार बक्सर के युद्ध के बाद बंगाल से लेकर उत्तर भारत तक कंपनी का साम्राज्य स्थापित हो गया।