चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) इतिहास Life History of Chandragupta II Vikramaditya in Hindi

चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) इतिहास Life History of Chandragupta II Vikramaditya in Hindi

चन्द्रगुप्त द्वितीय परिचय

समुद्रगुप्त के दो पुत्र थे- रामगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य), उनकी माँ का नाम था दत्ता देवी था। चन्द्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त के छोटे बेटे थे, पर समुद्रगुप्त चाहते थे कि चन्द्रगुप्त द्वितीय  ही उनके उत्तराधिकारी बने और वह उनका सिंहासन संभाले पर समुद्रगुप्त को जो डर था वैसा ही हुआ रामगुप्त राजा बन गये और वह एक अयोग्य और दुर्वल राजा साबित हुये। इ

सी बात का फायदा उठाकर मगध के शत्रु शक राजा ने मगध पर आक्रमण कर दिया और रामगुप्त को हरा दी हारने के बाद उसने सोचा कि शत्रु के आगे मै अपनी पत्नी को समर्पण कर देता हूँ। जब यह बात उसके छोटे भाई समुद्रगुप्त को पता चली तब उसने रामगुप्त का बध कर दिया और ध्रुह देवी से विवाह कर लिया और 380 में मगध के राजा बन गये इन सभी बातों का उल्लेख कवि मिरान्यास में मिलता है।

विक्रमादित्य की बचपन से ही राजकाज में दिलचस्पी थी वह अपने पिता समुद्रगुप्त से युद्ध नीतियों का ज्ञान प्राप्त करता रहते थे। जब वह राजा बने तो अपनी इसी सैन्य कुशलता से वह आगे बढ़ते गए और गुप्त वंश का साम्राज्य स्थापित कर दिया ।

आज से 1500 साल पहले उत्तरी भारत में गुप्त वंश का राज्य था। 5 वर्ष तक लगातार शक्तिशाली शासक पैदा होने के कारण गुप्त साम्राज्य काफी फ़ैल गया था जिस कारण कला विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों में काफी उन्नति हुयी जहाँ एक ओर तो नृत्य संगीत मूर्तिकला चित्रकला मंदिरों के निर्माण में प्रगृति हुयी वही दूसरी ओर गणित, खगोल, चिकित्सा, ज्योतिष के क्षेत्र में भी बहुत विकास हुआ इन्ही गुप्त राजाओं में से एक थे।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य उनको चन्द्रगुप्त महान भी कहते है उन्होंने अधिकांश भारत का भाग अपने राज्य में मिला लिया था वे चाहते थे कि भारत में एकता बनी रहे और भारत का आर्थिक रूप से पूर्ण विकास हो। मौर्यकालीन राज्य आज भी एक बिकसित राज्य के रूप में जाना जाता है भारतीय इतिहास में इस शासक को एक अमर प्रेम कहानी के रूप में जाना जाता है। 

चन्द्रगुप्त मौर्य की वीरता और उनके साम्राज्य का विस्तार  :

जब वह राजा बने तो उन्होंने अपनी पिता से सीखी इन्ही कूट नीतियों का उपयोग किया और अपना शासन आगे बढ़ाया गया चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने तीन महत्वपूर्ण कार्य किये। उन्होंने तीन गठबंधन भी किये ध्रुह देवी से विवाह करने के बाद उन्होंने नाग वंश की राजकुमारी से विवाह रचाया । नागवंश का राज्य मथुरा से लेकर पद्मावती तक था।

नागवंश कम ताकतवर होते हुये भी मध्य भारत में स्थित होने के कारण रणनीतिक रूप से बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण था। चन्द्रगुप्त द्वितीय की पहली पत्नी से एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम इन्होने कुमारगुप्त प्रथम रखा।

चन्द्रगुप्त ने कुमारगुप्त का विवाह कदम वंश के राजा काकुतस्वरमन की पुत्री से करा दिया। कदम राज्य जो आज के समय का कर्नाटक  है दक्षिण भारत का बड़ा राज्य हुआ करता था और कदम राज्य की सहायता से चन्द्रगुप्त द्वितीय ने दक्षिण भारत के छोटे छोटे राज्यों पर विजय प्राप्त की।

हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों को बहुत सारे अभिलेख मिले है जिससे यह सिद्ध होता है कि चन्द्रगुप्त का राज्य पूर्व में बंग राज्य जिसे हम आज का पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के नाम से जानते है से लेकर पंजाब को पार करता हुआ आज के अफगानिस्तान तक फैला हुआ था।

कहा जाता है दिल्ली के महरौली में मिले लोहे का स्तम्भ, इलाहबाद में मिला अशोक स्तम्भ मथुरा में मिला अभिलेख  हुन्ज़ा, बल्किस्तान में मिला पत्थर सोर्कोट , रांची में मिला अभिलेख चन्द्रगुप्त के कार्य काल को स्वर्ण काल के नाम से भी जानते है जिसकी पुष्टि हमें चीन से आये बौद्ध धर्म के गुरु फाहयान की पुस्तक में भी मिलता है।

फाहयान चीन से भारत आये थे उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि मध्य भारत के सभी लोग बहुत ही सुखी और संपन्न थे किसी को भी मृत्यु दंड नहीं सिया करते थे यहाँ तक कि पशु पक्षी को मारना भी बर्झित था। उस समय मांस और मदिरा न बेचीं जाती थी न ही इसका कोई सेवन करता था।

चन्द्रगुप्त के कार्यकाल में कृषि, व्यापार कला, विज्ञान, साहित्य, ज्योतिष और चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत उन्नति हुयी और ऐसा इसीलिए हुआ क्यूंकि इन सभी क्षेत्रों के नौ विशेषज्ञों को चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपने दरवार में महत्व्वपूर्ण स्थान दिया था और चन्द्रगुप्त द्वितीय ने इन्ही नौ विशेज्ञों को नौ रत्न की उपाधि दी थी।  

शकवंश

करीब 100 ईसा पूर्व सीथिया जनजाति के लोग मध्य एशिया से भारत आये जो बाद में शक कहलाये जब यह भारत आये तब चार अलग अलग जगह इन्होने अपना साम्राज्य फैलाया तक्षिला, राजिस्थान, उज्जैन, नाशिक। शक अपने आप को क्षत्रक कहते थे। त

क्षिला और मथुरा जो कि उत्तरी भाग में थे इसीलिये उन्होंने अपने आप को उत्तरी क्षत्रक कहा और  नाशिक और उज्जैन के राजा अपने आपको पश्चिमी क्षत्रक कहते थे। उत्तरी क्षत्रक तो चन्द्रगुप्त द्वितीय के पहले खत्म हो चुके थे लेकिन पश्चिमी क्षत्रक उस समय भी काफी शक्तिशाली थे।

इसके साथ ही क्रूर भी थे इसके साथ आसपास के गाँव में हत्या और लूटपात जैसे कामों को भी किया करते थे यहाँ तक कि इनकी प्रजा भी इनके व्यवहार से परेशान थी और इसी वजह से चन्द्रगुप्त द्वितीय भी इन पर विजय प्राप्त करना चाहते थे चन्द्रगुप्त ने अपनी स्थिति और मज़बूत करने के लिये अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह बकाटक राज्य के राजा रूद्र से करा दिया।

काटक राज्य जो आज का महाराष्ट्र है उस समय का एक शक्तिशाली राज्य हुआ करता था । रुद्रसेन की शादी के कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गयी तो प्रभावती ने अपने पिता की सहायता से बाकाटक राज्य पर शासन किया।

पश्चिमी क्षत्रक पर चन्द्रगुप्त ने नागवंश की मदद से पूर्व की ओर से बाकाटक राज्य की सेना ने दक्षिण की ओर से आक्रमण कर दिया और पश्चिमी क्षत्रक को हरा दिया और इसके साथ ही शक वंश का खात्मा कर दिया। शकों की इस विजय के बाद चन्द्रगुप्त द्वितीय को शकारी और विक्रमादित्य की उपाधी दी गई। इसके बाद ही चन्द्रगुप्त ने अपनी राजधानी मगध से उज्जैन में स्थापित कर ली। 

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्न

आइये आज हम चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्न के बारे में बात करते है कि कौन कौन से नवरत्न उनके दरवार में है। वराहमिहिर, वररूचि, वेतालभट्ट, अमर सिंह, काली दास, धन्वन्तरी, हरिदास, शंकु, क्षपणक आदि।

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