महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कहानी Mahakaleshwar Jyotirlinga History Story in Hindi

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कहानी Mahakaleshwar Jyotirlinga History Story in Hindi

12 ज्योतिर्लिंगों में से तृतीय ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर का विवरण शिवपुराण के कोटिरूद्रसंहिता के सोलहवें अध्याय में श्री सूत जी महाराज द्वारा किया गया है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से यही केवल दक्षिणमुखी है। पुराणों और महाकवियों की रचनाओं में भी महाकालेश्वर का वर्णन हुआ है।

संस्कृत के महान कवि और नाटककार कालिदास ने अपनी रचना “मेघदूतम” में उज्जैन का वर्णन किया है। मुग़लों द्वारा इस मंदिर को विध्वंश करने की कई बार योजना भी बनायीं गयी। सन 1235 ई. में इल्तुतमिश ने इस मंदिर का विध्वंश किया था। उसके बाद इस मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार किया गया। आईये इसकी कथा को हम विस्तार से जानते हैं।

इन 12 ज्योतिर्लिंग के नाम हैं –

  • सोमनाथ
  • मल्लिकार्जुन
  • महाकालेश्वर
  • ओम्कारेश्वर
  • केदारनाथ
  • भीमाशंकर
  • काशी विश्वानाथ
  • त्रयंबकेश्वर
  • वैद्यनाथ
  • नागेश्वर
  • रामेश्वर
  • घृष्णेश्वर

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कहानी Mahakaleshwar Jyotirlinga History Story in Hindi

Story 1

अवंती नगरी यानि कि उज्जैन नगरी जो मध्य प्रदेश में स्थित है, वहां वेदप्रिय नामक ब्राह्मण रहा करते थे। वे अपने घर में अग्नि की स्थापना करके प्रतिदिन अग्नि पूजन करते थे और शिवलिंग का निर्माण कर शास्त्र विधि से उनकी पूजा किया करते थे।

उस ब्राह्मण के चार पुत्र थे देवप्रिय, प्रियमेध, संस्कृत और सुव्रत। ये चारों पुत्र तेजश्वी और माता-पिता की आज्ञा का पालन करने वाले थे। उन्ही दिनों रतनमाल पर्वत पर दूषण नामक असुर ने भगवान भ्रह्मा जी से अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया।

दूषण सभी लोगों पर अत्याचार करने लगा। सबको सताने के बाद अपनी सारी सेना लेकर अवंती नगरी पहुंचा और ब्राह्मणों को परेशान करने लगा। उस दूषण की आज्ञानुसार चार भयानक राक्षस चारों दिशाओं में प्रकट हो गए और अत्याचार करना शुरू कर दिया। सब जगह हाहाकार मच गया। इतना सब होने पर भी वे चार ब्राह्मण बंधू भयभीत ना हुए और शिव जी का पूजन करना शुरू कर दिया।

दूषण ने देखा कि उसके अत्याचार का असर इन चारों पर नहीं पड़ रहा है। वह अपनी सेना को लेकर वहां पहुँच गया और उन चारों से बोला कि इन्हे बाँध कर मार डालो। लेकिन उन पुत्रों पर उस दूषण असुर की बातों का कोई प्रभाव ना पड़ा और वे शिव भगवान की पूजा में लीन रहे।

दूषण को क्रोध आया और उन चारों को मारने के लिए उसने तलवार उठायी, जैसे ही वह मारने के लिए आगे बड़ा उसी स्थान पर एक गड्ढा बन गया और शिव भगवान जी प्रकट हो गए।

शिव जी ने उन असुरों को कहा कि तुम जैसे लोगों के विनाश के लिए मैं काल के रूप में प्रकट हुआ हूँ। इस प्रकार महाकाल शिव जी ने अपने हुंकार मात्र से ही असुरों का विनाश कर दिया। शिव भगवान जी उन चारों पुत्रों पर अति प्रसन्न हुए और बोले कि मनचाहा वर मांगों।

उन चारों ने बोला कि आप हमें मोक्ष प्रदान करें और लोगों की रक्षा के लिए यहाँ सदा के लिए विराजमान हो जाईये। तब शिव भगवान ने उन चारों को मोक्ष प्रदान किया और अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदा के लिए वहीँ विराजमान हो गए और उस गड्ढे के एक- एक कोस की भूमि लिंग रुपी भगवान शिव की स्थली बन गयी। इस प्रकार उज्जैन में शिव जी महाकालेश्वर नाम से वहां विराजमान हैं।

Story 2

एक अन्य कथा भी प्रचलित है। उज्जैन में चन्द्रसेन नामक राजा रहते थे। वे शिवभक्त थे। उन्हें शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान था। उनके इस तरह के व्यवहार के कारण शिव जी भगवान के गण मणिभद्र जी उनके मित्र बन गए।

मणिभद्र जी राजा चद्रसेन से इतने प्रसन्न थे कि उन्होंने उन्हें एक चिंतामणि नामक महामणि राजा को उपहार स्वरुप दी थी। वह मणि सूर्य के समान अत्यंत दिव्यमान और चमकदार थी। उस मणि को देखने मात्र से ही लोगों के संकट दूर हो जाते थे।   

चन्द्रसेन ने उस मणि को अपने गले में धारण कर लिया था। उस मणि को पाने के लिए सभी राजाओं का लोभ बड़ गया। उन राजाओं ने सेना तैयार की और मणि को पाने के लिए चल दिए। मणि पाने की चाह में उन सभी राजाओं ने एक साथ चन्द्रसेन पर आक्रमण कर दिया। उन राजाओं ने उज्जैन के चारों द्वार खोल दिए। चन्द्रसेन राजा अत्यंत भयभीत हो गए।

वे महाकालेश्वर शिव जी भगवान के शरण में पहुंचे और महाकाल की भक्ति में लीन गए। उसी दौरान एक ग्वालिन विधवा स्त्री अपने पांच साल के बच्चे के साथ महाकाल के दर्शन के लिए आयी। उस बालक ने देखा कि चन्द्रसेन शिव जी की आराधना में लीन हैं। ऐसा देखकर उसे आश्चर्य हुआ। फिर उसकी माता और बालक ने शिव जी की अर्चना-पूजा की और वहां से चले गए।

उस बालक ने घर जाकर उसी विधि-विधान से पूजन करने का निर्णय किया और एक पत्थर लाया और एकांत में जाकर स्थापित कर दिया। उस बालक ने उस पत्थर को ही शिवलिंग मान लिया और चन्द्रसेन राजा की पूजन विधि अनुसार पूजा करना शुरू कर दिया।

वह बालक भगवान शिव जी की भक्ति में इतना लीन हो गया कि उसे कोई होश ही नहीं था। अपनी माता के द्वारा भोजन के लिए बुलाये जाने पर भी उसे कुछ सुनाई न पड़ा। उसकी माता स्वयं चलकर उसे बुलाने गयी।

उसकी माता वहां पहुंची और बालक को देखा कि वह आँखें बंद करके उस पत्थर के सामने बैठा हुआ है। माता ने बालक को उठाया लेकिन वह नहीं उठा। तब माता को क्रोध आया और उस पत्थर को उठा कर फेंक दिया। पूजन की सारी सामग्री को भी फेंक दिया। बालक शिव जी का अनादर देखकर रो पड़ा और उसकी माता क्रोध में अंदर चली गयी। बालक अत्यंत दुखी हुआ और बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।

कुछ देर बाद होश आने पर उसनी अपनी आँखें खोली और उसने देखा कि कोई दिव्य मंदिर वहां स्थापित हो गया है। उस भव्य मंदिर के अंदर बहुत ही सुन्दर शिवलिंग था। ग्वालिन भी शिवलिंग को देखकर आश्चर्यचकित हो उठी।  

उसने देखा कि पुष्प आदि, पूजा की सामग्री जो उसने फेंक दी थी वह शिवलिंग पर चढ़ी हुई है। वह नतमस्तक हो गयी और भाव-विभोर हो उठी। वह बालक जब शाम को मंदिर से बाहर आया तब उसने देखा कि उसका निवास स्थान सुवर्णमय हो गया है। उसने देखा कि उसकी माता आभूषणों से युक्त पलंग पर सो रही है।

सब जगह दिव्य प्रकाश विद्यमान है। उसने माता को जगाया तब उसकी माता भी यह सब देखकर आश्चर्यचकित हो उठी। उसने अपने बेटे को गले से लगा लिया। बालक ने उस चन्द्रसेन राजा की शिव भगवान की पूजा – अर्चना के बारे में बताया तब ग्वालिन विधवा ने चन्द्रसेन राजा को सूचित किया। चन्द्रसेन ने उस अद्भुत वृतांत को सुना। यह बात अन्य राजाओं तक भी पहुँच गयी जिन्होंने उज्जैन नगरी को घेर रखा था। वे सभी राजा भी इस बात से आश्चर्यचकित हो उठे।

क्त हैं, तभी तो ऐसा हुआ है। उन पर विजय पाना मुश्किल है। इस उज्जैन नगरी का बालक भी बड़ा शिवभक्त है। ऐसा स्वाभाविक है। अर्थात हम इस नगरी का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। चन्द्रसेन राजा से मणि जीतना असंभव है। यदि हम सब चन्द्रसेन राजा पर आक्रमण करेंगे तो असफल रहेंगे। शिव भगवान भी रुष्ट हो जायेंगे। ऐसा करना अनुचित होगा। हम सभी को राजा चन्द्रसेन से मित्रता कर लेनी चाहिए।

उन सभी राजाओं ने भी शिव भगवान की पूजा-अर्चना करना शुरू कर दिया। तब वहां हनुमान जी प्रकट हो गए। उन्होंने कहा कि हे देह धारियों ! शिव भगवान जी के लिए आप सभी शरीरधारी से बड़कर कोई नहीं है। शिव जी की कृपा मिलने से ही मोक्ष की प्राप्ति होगी।

जिस तरह इस बालक पर शिव जी ने कृपा की है सब पर करेंगे। यह बालक अंत में मोक्ष की प्राप्ति करेगा। इस बालक के यहाँ आठवीं पीढ़ी में नन्द उत्पन्न होंगे और उनका पुत्र नारायण होगा। वे साक्षात् भगवान कृष्ण होंगे।

ऐसा कहकर हनुमान जी चले गए। वे सभी राजा भी भाव-विभोर होकर वहां से अपनी – अपनी नगरी को चल दिए।  ऐसा कहा जाता है कि महाकालेश्वर यहाँ साक्षात विराजमान हैं। दूर-दूर से लोग यहाँ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए आते हैं।

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