रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय Ramakrishna Paramahansa Life Story in Hindi

रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय Ramakrishna Paramahansa Life Story in Hindi

रामकृष्ण परमहंस उन्नीसवीं शताब्दी में भारत के सबसे प्रसिद्ध संत थे और आज भी उनके महँ कथनों और उन्हें याद किया जाता है। उनका जन्म 1836  में पश्चिम बंगाल के कलकत्ता के पास एक छोटे से शहर में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। एक युवा व्यक्ति के रूप में, वह कलात्मक और लोकप्रिय कहानीकार और अभिनेता थे।

रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय Ramakrishna Paramahansa Life Story in Hindi

प्रारंभिक जीवन Early Life

उनके माता-पिता धार्मिक थे उनका आध्यात्मिक सपनों की ओर झुकाव था। एक बार सपने में, भगवान ने उन्हें बताया कि रामकृष्ण एक बेटे के रूप आपके परिवार में पैदा होगें। सात वर्ष की उम्र में ही गदाधर के पिता की मृत्यु हो गई, तब परिस्थितियां इतनी विपरीत हो गई कि पूरे परिवार का पालन-पोषण करना कठिन होता चला गया और आर्थिक कठिनाइयां घेरने लगी लेकिन फिर भी गदाधर का साहस कम नहीं हुआ।

इनके बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय कलकत्ता (कोलकाता) में एक पाठशाला के संचालक थे। वे गदाधर को अपने साथ कोलकाता ले गये। रामकृष्ण का अन्तर्मन अत्यंत निश्छल, सहज और विनयशील था। संकीर्णताओं से वह बहुत दूर थे। अपने कार्यों में लगे रहते थे। भारत के ग्रामीण बंगाल गांव में पैदा हुए, श्री रामकृष्ण पांच बच्चों में से चौथे स्थान पर थे। उनके माता-पिता सरल स्वभाव थे लेकिन पारंपरिक ब्राह्मण (हिंदू धर्म) परंपरागत धार्मिक पवित्रता, या धार्मिक भक्ति के रखरखाव के लिये गहराई से प्रतिबद्ध थे। इसी प्रकार, रामकृष्ण की मां, चंद्र देवी के पास दृष्टांत था कि उनका अगला जन्म दिव्य बच्चा होगा।\

दक्षिणेश्वर में आध्यात्मिक साधना

दक्षिणेश्वर में आध्यात्मिक साधना करने के कारण रामकृष्ण की चारों ओर यह अफवाह फ़ैल गई कि रामकृष्ण का मानसिक संतुलन ख़राब हो रहा है। रामकृष्ण की माँ और बड़े भाई रामेश्वर ने रामकृष्ण की शादी कराने का निर्णय लिया।

उनका यह सोचना था कि विवाह हो जाने पर गदाधर की मानसिक स्थिति का संतुलन ठीक हो सकता है और विवाह हो जाने के बाद आने वाली  ज़िम्मेदारियों से उनका ध्यान आध्यात्मिकता से दूर हो जाएगा।

1859 में 5 वर्ष की शारदामणि मुखोपाध्याय और 23 वर्ष के रामकृष्ण का विवाह संपन्न हुआ। विवाह के बाद शारदा अपने घर जयरामबाटी में रहती थी और 18 वर्ष के होने बाद वे रामकृष्ण के पास उनके घर दक्षिणेश्वर में रहने लगी।

कुछ दिनों बाद बड़े भाई की मृत्यु हो गई। इस घटना बाद से संसार की स्थिति को देखकर उनके मन में ओर अधिक वैराग्य पैदा हो गया। फिर उनका मन न होते हुये भी वे श्री राम कृष्ण मंदिर की पूजा, अर्चना करने लगे। दक्षिणेश्वर में स्थित पंचवटी मंदिर में रामकृष्ण अपने ध्यान में मग्न रहने लगे और वे ईश्वर दर्शन के लिये व्याकुल हो गये और लोगों को वह पागल लगने लगे।

रामकृष्ण परमहंस अपने जीवन के आखिरी दिनों में समाधि की स्थिति में रहने लगे। उनके शिष्य उनको ठाकुर के नाम से बुलाते थे। रामकृष्ण के परमप्रिय शिष्य विवेकानन्द थे, जो कुछ समय के लिये हिमालय के किसी एकान्त स्थान पर तपस्या करना चाह रहे थे। यही आज्ञा लेने जब वे अपने गुरु के पास गये तब रामकृष्ण उनसे बोले-वत्स हमारे क्षेत्र के लोग भूख प्यास से परेशान हैं।

चारों ओर अज्ञानता का अंधेरा फ़ैल रहा है। यहां लोग रो रहे है, चिल्ला रहें , दुखी हो रहे है और तुम हिमालय की किसी गुफा में समाधि के आनन्द में निमग्न कैसे रहोगे, क्या तुम्हारी आत्मा तुमको ये करने देगी? तब विवेकानन्द दरिद्र नारायण की सेवा में लीन हो गये। रामकृष्ण  उच्चकोटि के विचारक व साधक थे।

वे सेवा करके समाज की रक्षा करना चाहते थे। गले में सूजन होने के कारण जब डाक्टरों ने कैंसर बताया और उन्हें समाधि लेने और वार्तालाप करने से मना किया तब भी वे मुस्कराते रहे। चिकित्सा कराने से रोकने पर भी विवेकानन्द उनका इलाज कराते रहे। चिकित्सा होने के बाद भी उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता ही गया।

रामकृष्ण की चेतना बहुत कठोर थी, कि वह जो इच्छा करते थे, वह सच हो जाती थी और यह स्थिति किसी भी इंसान के लिये बहुत ही  सुखद होती है। हालांकि रामकृष्ण का मन, शरीर, और भावनाएं परमानंद में डूबी हुई थी, मगर फिर वी उनका मन इस अस्तित्व के परमानंद से भी आगे जाने को बेकरार था।

एकबार, रामकृष्ण हुगली नदी के तट पर बैठे हुये थे, तभी वहां से योगी तोतापुरी उसी रास्ते से निकले। ऐसे योगी हमारे देश में बहुत कम हैं। तोतापुरी ने देखा कि रामकृष्ण के अंदर परम ज्ञान प्राप्त करने की ताकत हैं। मगर वह तो सिर्फ अपनी भक्ति में डूबे हुए थे।

तोतापुरी रामकृष्ण के पास गये और उन्होंने रामकृष्ण को समझाने की बहुत कोशिश की, ‘क्यों आप सिर्फ अपनी भक्ति में ही मग्न रहते हैं? आपके अंदर विशाल क्षमता है कि आप चरम को  भी पा सकते हैं।’ तब रामकृष्ण ने कहा, ‘मैं सिर्फ काली को चाहता हूं, ।’ वह एक बच्चे की तरह थे, जो सिर्फ और सिर्फ अपनी मां को चाहते थे और इस बात पर उनसे बहस करना संभव नहीं था।

रामकृष्ण काली को समर्पित

रामकृष्ण काली को समर्पित थे और वे आनंदविभोर हो जाते थे और नाचना-गाना शुरू कर देते थे। जब वह थोड़ा धीरे गाने लगते थे और उनका काली से संपर्क टूट जाता, तो वह किसी बच्चे की तरह रोना शुरू कर देते थे ।

वह कुछ ऐसे ही थे इसलिए तोतापुरी जिस ज्ञान की बात कर रहे थे, उस ज्ञान में उनकी बिल्कुल दिलचस्पी  नहीं थी। योगी तोतापुरी ने उन्हें कई तरीके से समझाया पर रामकृष्ण समझने के लिये बिल्कुल तैयार नहीं हुये पर रामकृष्ण योगी तोतापुरी के साथ बैठना चाहते थे क्योंकि तोतापुरी की मौजूदगी कुछ अलग ही थी।

मृत्यु Death

16 अगस्त 1886 में सवेरा होने के कुछ ही पहले श्री रामकृष्ण अपने शरीर को त्याग कर महासमाधी ले ली।

By Author Abinash Chandra Dna. In Wikimedia original uploader was Sray at en.wikipedia [Public domain or Public domain], from Wikimedia Commons

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