मदर टेरेसा का जीवन परिचय Biography of Mother Teresa in Hindi

इस लेख में आप मदर टेरेसा का जीवन परिचय Biography of Mother Teresa in Hindi हिन्दी में पढ़ेंगे। इसमें उनका जन्म, प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, मिशनरी ऑफ चैरिटी, विवाद, उनकी मृत्यु तथा सुविचारों के विषय में जानकारी दी गई है।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय Biography of Mother Teresa in Hindi

दया और करुणा की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा पूरे विश्व में इंसानियत की एक मिसाल रही हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों की सेवा में गुज़ारा। 

मदर टेरेसा एक महान समाज सेविका थीं, जिन्हें आज भी उनके अनमोल कार्यों के लिए याद किया जाता है। इसके अलावा वे  पहली ऐसी विदेशी महिला थे, जिन्होंने भारत का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न प्राप्त किया था। 

स्वयं के स्वार्थ से परे हटकर मदर टेरेसा ने असहाय स्थिति में जीवन काट रहे लोगों सेवा की है। उन्होंने पूरी दुनिया में भ्रमण करके अफ्रीका, एशिया और यूरोप के कई कमजोर देशों में जाकर लाचार और दीन दुखियों की सहायता की है। 

भारत में उनका आगमन 20वीं सदी में हुआ था। उस समय काल में देश बड़े ही विपत्तियों से गुजर रहा था। एक तरफ ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की कमर तोड़ कर रखी थी, वहीं दूसरी ओर गरीबी और भुखमरी के कारण रोज हजारों लोगों की जाने जा रही थी। लोगों की स्थिति बेहद दयनीय थी। 

तरह-तरह की बीमारियों से जूझने के अलावा उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं होता था। मदर टेरेसा जब भारत आईं और उन्होंने यह सब मंजर दिखा तब उन्होंने भारत में ही रहने का निर्णय किया और वहीं रह कर लोगों की मदद करने लगी। 

एक मसीहा की तरह मदर टेरेसा ने ईसा मसीह का संदेश चारों तरफ फैलाया। आज की दुनिया से बिल्कुल अलग मदर टेरेसा एक महान महिला थी, जिन्होंने सुख सुविधाएं त्याग कर दूसरों की चिंताएं की। यही कारण है की कैथोलिक समाज के अलावा पूरी दुनिया के लोग ही मदर टेरेसा को बड़े ही सम्मान की भावना से देखते हैं।

मदर टेरेसा का जन्म व प्रारंभिक जीवन Birth & Early Life

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 में यूरोप के एक छोटे देश मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे में हुआ था। एक अल्बानिया व्यापारी के यहां जन्मी टेरेसा का बचपन बड़े ही सुख सुविधाओं में बीता। वे एक कैथोलिक परिवार से ताल्लुक रखती थीं, जिनका वास्तविक नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। 

उनकी माता का नाम द्रानाफाइल बोयजियू तथा पिता का नाम निकोला बोयाजू था। बहुत छोटी उम्र में ही उनके पिता चल बसे, जिसके बाद परिवार के हालात बद से बदतर होने लगे। मदर टेरेसा के कुल 5 भाई-बहन थे, जिनमें वे सबसे छोटी थी। पिता के निधन के बाद दो और बच्चों की मौत हो गई। 

एक साधारण और कम उम्र के बच्चों से केवल यही उम्मीद की जाती है, कि वह बाहर जाकर खेलकूद करें और खुश रहें। लेकिन मदर टेरेसा का बचपन बाकियों की तुलना से थोड़ा हटकर था। 

अगनेस बचपन से ही बहुत गंभीर प्रकृति की थी। जब भी उन्हें कोई गरीब या दुखी व्यक्ति दिखाई पड़ता, तो उसकी परिस्थिति को देखकर वे बेहद निराश हो जाती। प्रारंभ से घर में धार्मिक माहौल होने के कारण मदर टेरेसा बचपन से एक धार्मिक बच्ची थी। 

उन्हें बचपन से ही यह सीख दी गई थी, कि हमेशा अपनी खुशियां दूसरों के साथ बांटना चाहिए। मदर टेरेसा को शुरुआत से ही गाने का बहुत शौक था। वह दिखने में भी बेहद खूबसूरत थी। कहते हैं कि उनके घर से थोड़े दूरी पर एक चर्च हुआ करता था, जहां वह हमेशा ईसा मसीह की आराधना करने जाया करती थी और वहां गीत गाती थी। 

धीरे-धीरे करके मदर टेरेसा यीशु के रंग में इस प्रकार रंग गई, कि वे बाहरी दुनिया से दूर होने लगी। जब मदर टेरेसा 12 वर्ष की थी तभी से उन्होंने फैसला कर लिया था कि बड़े होकर उन्हें केवल दुखी लोगों की सेवा करनी है।  

मदर टेरेसा की शिक्षा Education of Mother Teresa in Hindi

धर्म-कर्म के अलावा मदर टेरेसा को पढ़ाई लिखाई में भी बहुत रूचि थी। कहते हैं कि वह अपनी कक्षा में सबसे होनहार छात्रा थी और परीक्षा में प्रथम अंक भी लाती थी। 

स्कोप्जे में एक पब्लिक स्कूल में उनका दाखिला करवाया गया। जैसे-जैसे मदर टेरेसा बड़ी होती गई उनका मन पढ़ाई लिखाई से हटकर धार्मिक कार्यों में लगने लगा।

यही वजह है की मदर टेरेसा ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर स्कूल सोसायटी की सदस्यता प्राप्त कर ली, जो समाज सेवा का कार्य किया करता था। यहां सभी को चैरिटी की तरफ से विभिन्न स्थानों पर यीशु के प्रचार और धर्म कर्म के लिए भेजा जाता था। 

बहुत कम उम्र में वे इस चैरिटी की तरफ से आयरलैंड गई जहां उनकी मुलाकात कैथोलिक नन ग्रुप से हुई। ‘सिस्टर्स ऑफ लोरेटो‘ के नाम से जाने जाने वाले इस समूह में मदर टेरेसा भी शामिल हो गई, इसके पश्चात उन्हें एक नया नाम सिस्टर टेरेसा मिला।

मदर टेरेसा कब और क्यों भारत आई? When Mother Teresa came to India?

6 जनवरी 1929 के दिन जब सिस्टर टेरेसा लोरेटो कॉन्वेंट की तरफ से भारत आई, तब उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। भारत आकर सबसे पहले उन्होंने अध्यापन में अपनी रुचि दिखाई। 

इसके पश्चात दार्जिलिंग में रहकर उन्होंने धार्मिक शिक्षा प्राप्त की ओर लोगों की सेवा करती रही। कुछ समय बाद 1931 में मदर टेरेसा पुनः भारत लौट गई। 

‘सेंट मेरीज हाई स्कूल फॉर गर्ल्स’ के नाम से प्रसिद्ध कोलकाता के एक कान्वेंट स्कूल में मदर टेरेसा ने अध्यापन कार्य भी किया। लगभग 1943 के दरमियान पश्चिम बंगाल के कई शहरों में एक भीषण तबाही और अकाल की समस्या छा गई थी। 

स्थिति बेहद खराब हो चुकी थी, जहां लोग भुखमरी से जूझ रहे थे। इसके अलावा तरह-तरह की अजीबोगरीब बीमारियां भी पनप रही थी। 

मदर टेरेसा ने इस त्रासदी के मंजर को बेहद करीब से देखा। लोगों को इस तरह देखकर वे भारत से पुनः आयरलैंड जाने का साहस नहीं जुटा पाई और आजीवन भारत में ही रह कर जरूरतमंद लोगों की सेवा करने का निश्चय किया।

मदर टेरेसा ने वर्ष 1948 में भारत की नागरिकता प्राप्त कर ली। इसके पश्चात ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना किया गया। कोलकाता में इस संस्था की स्थापना करने का मूल उद्देश्य मात्र जरूरतमंदों की सहायता करना था। 

मदर टेरेसा छुआछूत और पक्षपात से बेहद घृणा करती थी, इसलिए समाज से अलग कर दिए गए लोगों की सहायता करना वे अपना सौभाग्य समझती थी। 

मदर टेरेसा मिशनरी ऑफ चैरिटी Missionaries of Charity

मिशनरी ऑफ चैरिटी संस्था की स्थापना मदर टेरेसा ने 1950 में किया था। कोलकाता में स्थापित की गई यह संस्था रोमन कैथोलिक की एक शाखा से जुड़ी है, जो समाज सेवा का कार्य करती है। 

आज के समय में मिशनरीज ऑफ चैरिटी रोमन कैथोलिक से जुड़ी संस्थाओं में विश्व प्रसिद्ध मानी जाती है। लगभग 100 से भी अधिक देशों में फैली हुई यह संस्था विश्व में मानव कल्याण का नेक कार्य करती है।

मिशनरी ऑफ चैरिटी से जुड़कर यदि कोई व्यक्ति संस्था के जरिए अपना सहयोग लोगों तक पहुंचाना चाहता है, तो उसे सर्वप्रथम कई परीक्षणों से गुजरना पड़ता है।  

लगभग कई सालों तक दूसरी छोटी संस्थाओं से जुड़ कर विभिन्न जगहों पर जाकर लोगों तक संपर्क किया जाता है, इसके पश्चात ही अंत में मिशनरीज ऑफ चैरिटी में प्रवेश करने का अवसर प्राप्त होता है।

यह संस्था इसलिए भी अनोखी है, क्योंकि इसके अधिकतर सदस्य अपनी सारी संपत्ति और जमा पूंजी को संस्था में लगा देते हैं और खुले मन से ईसा मसीह के इस पवित्र कार्य को अपनाते हैं। 

संस्था के बड़े पदों पर सेवा देने वाले सदस्य अपने परिवार तक को त्याग देते हैं। बाहरी दुनिया से कोई भी मतलब न रखकर केवल और केवल परम ब्रह्मा की चेतना को दुनिया भर में प्रसारित करना इस चैरिटी का मुख्य काम होता है।

वृद्ध आश्रम, अनाथालय इत्यादि जैसे सेवाओं के अलावा यह चैरिटी लोगों की भूख भी मिटाती है। ऐसे लोग जो बेघर, लाचार और दुखी हैं यह चैरिटी ऐसे दुखियों की मदद करने के लिए समाज से फंड भी जुटाती है और जमा किए गए धनराशि को समाज के नेक कार्य में लगाया जाता है

मदर टेरेसा पर हुए विवाद Controversy Over Mother Teresa in Hindi

ऐसी महान महिला जिसे भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया है, आश्चर्य की बात है कि वे अपने जीवन काल में कई विवादों में भी सुर्खियों में रहती थी। 

मदर टेरेसा और उनके सहकर्मियों पर लगाए जाने वाले सबसे बड़े आरोपों में से एक धर्म परिवर्तन का आरोप है। इस मुद्दे के कारण आज भी मदर टेरेसा द्वारा किए गए कार्य को पक्षपातपूर्ण और विवादित माना जाता है।

इसके साथ ही कैथोलिक समाज से जुड़ी हुई तमाम चैरिटी का प्रचार प्रसार भी एक विवाद स्वरूप बन चुका था। कई लोगों का आरोप है, कि मदर टेरेसा के पास कई अरबों डॉलर की धनराशि थी, जिसे उन्होंने वेटिकन सिटी के बैंक में गुप्त तरीके से छुपा रखा था। कुछ लोग यह भी दावा करते हैं, कि मदर टेरेसा केवल दूसरों का मदद करने का दिखावा करती थी।

उनके चिकित्सालय में ऐसे लोग पाए गए, जो पर्याप्त सुविधा न मिलने के कारण बीमारियों से बिलखते रहते थे। इसके पीछे यह तर्क दिया जाता था, कि यदि मदर टेरेसा के पास इतने अरबों डॉलर मौजूद है तो वे लोगों की भलाई के लिए क्यों उपयोग नहीं करती हैं। 

कई अन्य धार्मिक संगठनों का यह आरोप मदर टेरेसा पर लगाया गया है, कि वह अपने चैरिटी के प्रचार प्रसार के पत्रिकाओं पर ईसाई धर्म अपनाने का संदेश छपवाती थीं। 

मदर टेरेसा से जुड़ी हुई एक विवादास्पद संगीन आरोप यह भी लगाया जाता था, कि जो भी असहाय गरीब अथवा रोगी उनकी संस्था में शरण लेता था, मदर टेरेसा उसका जबरन बपतिस्मा करवाकर धर्म परिवर्तन कर देती थी। इसके अलावा उनपर लगाए गए आरोपों की सूची बेहद लंबी है। 

मदर टेरेसा को दिए गए अवॉर्ड Mother Teresa Received Awards 

जिस तरह मदर टेरेसा ने अपने जीवन के सुख को त्याग कर दूसरे लोगों की समस्याओं के निदान करने में अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया, इसकी जितनी सराहना की जाए उतनी कम पड़ेगी।

वर्ष 1962 में भारत सरकार ने मदर टेरेसा को ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से नवाजा। जिसके पश्चात कुछ सालों बाद ही 1980 में भारतीय इतिहास में पहली बार एक विदेशी महिला मदर टेरेसा को सर्वोच्च भारतीय सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया।

भारत के प्रसिद्द ‘बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी’ ने मदर टेरेसा को ‘डी-लिट’ की उपाधि से नवाजा। 19 दिसंबर 1979 उनके मानव कल्याण में दिए गए अनमोल योगदानों के लिए उन्हें ‘नोबेल प्राइज’ से सम्मानित किया गया। 

इसके पश्चात ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि अमेरिका के एक कैथोलिक यूनिवर्सिटी द्वारा मदर टेरेसा को दिया गया। 1988 में ‘ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर’ तथा 09 सितम्बर 2016 में वेटिकन सिटी के पोप फ्रांसिस द्वारा मदर टेरेसा को ‘संत’ की उपाधि से विभूषित किया गया।

मदर टेरेसा की मृत्यु Mother Teresa Death in Hindi

मदर टेरेसा ने कई सालों तक ऐसे लोगों के बीच रहकर सामाजिक कार्य किया, जहां अजीबो गरीब गंभीर बीमारियां होती थी, जिनका इलाज डॉक्टरों के पास भी नहीं होता था। ऐसी स्थिति में मदर टेरेसा रोगियों के पास जाकर उनका उपचार करती, उन्हें खाना खिलाती, और उस जगह का साफ-सफाई भी स्वयं करती।

कुछ समय बाद ऐसे गंभीर रोग पीड़ितों के बीच रहने के कारण उन्हें भी हृदय की बीमारी हो गई, जिसके कारण उन्हें सांस की बीमारी के साथ ही कई तरह के इन्फेक्शन हो गए थे। 

आखिर वह अंतिम समय आ ही गया, जब पूरी दुनिया को अलविदा कहकर 5 सितंबर 1997 में कलकत्ता में मदर टेरेसा ने अपने प्राण त्याग दिए। मानवता का वास्तविक पाठ पढ़ाने वाली मदर टेरेसा आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। 

इंटरनेशनल चैरिटी डे International Charity Day

मदर टेरेसा केवल एक या दो देशों में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में एक बड़ी हस्ती हैं। उनके अनमोल योगदान से पूरा संसार ही परिचित है। वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र ने मदर टेरेसा के पुण्यतिथि 5 सितंबर को “इंटरनेशनल चैरिटी डे” घोषित कर दिया था। 

प्रतिवर्ष तभी से 5 सितंबर को यह दिन मदर टेरेसा की याद में उनके पुण्यतिथि पर मनाया जाता है। यह दिन मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया में फैले हुए राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय तथा स्थानीय परोपकारी और धार्मिक संस्थाओं की तरफ लोगों की जागरूकता बढ़ाने का है। 

मदर टेरेसा के 10 अनमोल कथन Mother Teresa Quotes in Hindi

  1. यदि आप सौ लोगों का पेट नहीं भर सकते, तो कम से कम एक का पेट ज़रूर भरें।
  2. एक दुसरे के लिए कहे गए प्रेम और करुणा भरे शब्द छोटे हो सकते हैं, लेकिन उनकी गूंज विशाल होती है।
  3. कुछ लोग जीवन में अभिशाप की तरह होते हैं, जिनकी उपस्थिति हमे सबक दे जाती है, तो कुछ लोग एक आशीर्वाद की तरह आते हैं।
  4. ईश्वर कभी यह अपेक्षा नहीं करते कि हम सफल हों। वे तो केवल इतना ही चाहते हैं कि हम प्रयास करें।
  5. वह जीवन व्यर्थ है, जो केवल स्वयं के स्वार्थ को साधने के लिए जीया जाता है।
  6. जो लोग दिखने में सुंदर होते हैं, यह जरूरी नहीं कि उनका हृदय भी सुंदर होगा।
  7. प्रेम हर मौसम में उगने वाले एक फल की तरह है, जिसे हर कोई चख सकता है।
  8. अपने किए गए प्रत्येक कार्य में ईमानदार रहिए, क्योंकी यह आपके शक्ती को प्रदर्शित करता है।
  9. भेंट में देने के लिए दुनिया की सबसे कीमती चीज़ ‘प्रेम’ है।
  10. एक ‘कल’ जो कब का गुज़र चुका है, और एक ‘कल’ वह जो अभी आया ही नहीं है, हमारे पास केवल आज है, तो चलिए अभी शुरूआत करते हैं।

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