मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जीवन परिचय Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi

इस लेख में आप मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जीवनी Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi पढ़ेंगे। इसमें आप अबुल कलाम का प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, करिअर, क्रांतिकारी कार्य, मृत्यु से जुड़ी जानकारी दी गई है।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का पुर नाम Maulana Abul Kalam Azad Full Name in Hindi & English

Sayyid Ghulam Muhiyuddin Ahmed Bin Khairuddin Al Hussainiअबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन
(सैय्यद गुलाम मुहियुद्दीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल हुसैनी)

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जीवन परिचय Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi

उनका पूरा नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था। भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक मौलाना अबुल कलाम आजाद, एक प्रकांड विद्वान के साथ-साथ एक कवि भी थे।

भारत की आजादी में सहयोग देने वाले एक महत्त्वपूर्ण राजनेता रहे। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे।

उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया, तथा वे अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओ में से थे।

उन्होंने गांधी जी के साथ अहिंसा का साथ देते हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन और खिलाफत आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने लंबे समय तक भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और साथ ही भारत-पाकिस्तान विभाजन के गवाह बने।

मौलाना अबुल कलाम आज़ादएक सच्चे भारतीय थे जिसके कारण भारत पाकिस्तान के विभाजन के बाद भारत में ही रहकर उसके विकास के लिए कार्य किया। वे स्वतंत्र भारत देश के पहले शिक्षा मंत्री बने तथा देश की शिक्षा पद्धति को सुधारने का ज़िम्मा उठाया।

राष्ट्र के प्रति उनके अमूल्य योगदान के लिए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को मरणोपरांत 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान व पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जन्म व प्रारंभिक जीवन Birth & Early Life of Abul Kalam Azad

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था इनके पिता मौलाना खैरूद्दीन अफगान मूल के एक बंगाली मुसलमान थे। मोहम्मद खैरुद्दीन और उनके परिवार ने भारतीय स्वतंत्रता के पहले आन्दोलन के समय 1857 में कलकत्ता छोड़ कर मक्का चले गए

वहाँ पर मोहम्मद खॅरूद्दीन की मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से हुई जो अरब देश के शेख मोहम्मद ज़हर वत्री की पुत्री थीं। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के जन्म के 2 वर्ष बाद सन् 1890 में उनका परिवार भारत वापस आ गया और कोलकाता में आकर बस गया।

मौलाना अबुल कलाम आज़ादजब मात्र 11 वर्ष के थे उनकी माता का देहावसान हो गया। 13 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह जुलेखा बेगम से कर दिया गया।

अबुल कलाम आज़ाद की शिक्षा Education of Maulana Abul Kalam Azad in Hindi

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का परिवार रूढ़िवादी विचारधाराओं का अनुसरण करता था जिसका असर इनकी शिक्षा पर भी हुआ। इनको परंपरागत तौर पर इस्लामिक शिक्षा दी गई।

शुरुआत में घर पर तथा मस्जिद पर इनके पिता इनको इस्लामी शिक्षा दिया करते थे क्योंकि इनके परिवार के सभी वंशो को इस्लामिक शिक्षा का बख़ूबी ज्ञान था और यह ज्ञान मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को विरासत में मिला बाद में उनके लिए शिक्षक नियुक्त किए गए जो संबंधित विषयों को पढ़ाते थे।

उन्होंने ने पहले अरबी और फ़ारसी सीखी उसके बाद दर्शनशास्त्र, रेखागणित, गणित और बीजगणित की पढाई की। अंग्रेजी भाषा, दुनिया का इतिहास और राजनीति शास्त्र उन्होंने स्वयं अध्ययन करके सीखा।

साथ ही उन्होंने बंगाली और उर्दू भाषा भी सीखी थी। मात्र सोलह साल की उम्र में ही उन्हें वो सभी शिक्षा मिल गई थीं जो आमतौर पर 25 साल में मिला करती थी।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का करियर Career of Abul Kalam Azad in Hindi

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को एक विशेष शिक्षा और ट्रेनिंग दी गई थी जो एक मौलवी बनने के लिए जरूरी थीं। उन्होंने अपने शुरुआती कैरियर में कई पत्रिकाओं में काम किया वे देवबन्दी विचारधारा के करीब थे।

इसलिए उन्होंने कुरान के अन्य भावरूपो पर भी लेख लिखा साथ ही उन्होंने पवित्र कुरान के सिद्धांतों की व्याख्या अपनी दूसरी रचनाओं में की। वे साप्ताहिक समाचार पत्र “अल-मिस्वाह” के संपादक थे।

उनकी विद्वता ने उन्हें परम्पराओं के अनुसरण का त्याग करना और नवीनतम सिद्धांतो को अपनाने का निर्देश दिया वे आधुनिक शिक्षावादी सर सैयद अहमद खान के विचारों से सहमत थे उन्होंने जमालुद्दीन अफगानी और अलीगढ के अखिल इस्लामी सिद्धांतो और सर सैय्यद अहमद खान के विचारो में अपनी दिलचस्पी बढ़ाई।

यह वह समय था जब मौलाना अबुल कलाम आज़ाद एक कट्टरपंथी राजनैतिक विचारधारा रखते थे जो अचानक भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ बदलकर राष्ट्रीयता के रूप में विकसित हो गया. वे ब्रिटिश राज और मुसलमानों के सांप्रदायिक मुद्दों से बढ़कर देश की आजादी को कहीं ज्यादा तवज्जो देते थे।

अखिल इस्लामी भावना से ओतप्रोत होकर उन्होंने अफगानिस्तान, इराक, मिश्र, सीरिया और तुर्की का दौरा किया। वहा इराक में निर्वासित क्रांतिकारियों से मिले जो ईरान में संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए लड़ रहे थे।

मिश्र में उन्होंने शेख मुहम्मद अब्दुह और सईद पाशा और अरब देश के अन्य क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं से मुलाकात की इन सभी मुलाकातों ने उन्हें राष्ट्रवादी क्रांतिकारी में तब्दील कर दिया।

क्रांतिकारी के रूप में भूमिका Role As A Revolutionary

विदेश यात्रा से भारत लौटने के बाद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद दो हिंदू क्रांतिकारियों (अरविंद घोष और श्याम सुंदर चक्रवर्ती) से प्रभावित होकर सक्रिय रूप से स्वतंत्रता के लिए भाग लिया।

इन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों को सिर्फ बंगाल और बिहार तक ही सीमित नहीं रहने दिया बल्कि 2 साल के भीतर ही पूरे उत्तर भारत में एक क्रांतिकारी आंदोलन खड़ा कर दिया। उन्होंने मुंबई में गुप्त क्रांतिकारी केंद्रों की भी संरचना की।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद बंगाल के विभाजन का विरोध किया करते थे, उन्होंने सांप्रदायिक अलगाववादियों के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की याचिका को खारिज कर दिया था। एक मौलवी के रूप में शिक्षा लेने के बावजूद भी उन्होंने इस कार्य को नहीं चुना और हिंदू क्रांतिकारियों के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े।

सन 1912 में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने उर्दू भाषा में एक अल हिलाल नाम की साप्ताहिक पत्रिका प्रारंभ की जो दो समुदायों के बीच हुए मनमुटाव के बाद हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन 1914 में सरकार द्वारा अल हिलाल को अलगाववादी विचारधारा को फैलाने के कारण प्रतिबंधित कर दिया।

जिसके कुछ समय बाद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अल-बघाल नाम की नई पत्रिका निकाली जो बिल्कुल अल हिलाल की तरह काम करती थी। लगातार पत्रिका में राष्ट्रीयता की खबर छपने के बाद देश में आक्रोश पैदा होने लगा था जिससे ब्रिटिश सरकार को खतरा महसूस करने लगा था जिसके कारण उन्होंने इस पत्रिका पर भी प्रतिबंध लगा दिया।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को गिरफ्तार कर रांची के जेल में डाल दिया। 1 जनवरी 1920 को रिहाई के बाद उन्होंने खिलाफत आंदोलन के द्वारा मुस्लिम समुदाय को जागृत करने की कोशिश की मौलाना अबुल कलाम आज़ाद महात्मा गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन का समर्थन करते हुए 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए।

कुछ समय बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए गांधी जी के साथ नमक सत्याग्रह में होने और नमक कानून का उल्लंघन करने के कारण 1930 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और सन 1934 तक वह जेल में ही रहे।

मौलाना आज़ाद 1940 मैं रामगढ़ अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए वहां उन्होंने धार्मिक अलगाववादियों की आलोचना की और सन 1946 तक वह उसी पद पर बने रहें।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद 1947 में भारत की आजादी और भारत पाकिस्तान के बंटवारे के प्रत्यक्ष गवाह रहें जवाहरलाल नेहरु की सरकार में मौलाना जी को पहली कैबिनेट मंत्रिमंडल में 1947 से 1958 तक शिक्षा मंत्री बनाया गया।

और पढ़ें: खेड़ा सत्याग्रह तथा चंपारण सत्याग्रह

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की मृत्यु Death of Maulana Abul Kalam Azad in Hindi

22 फरवरी 1958 भारत ने एक महान नेता खो दिया मौलाना अबुल कलाम आज़ादजी की मृत्यु दिल के दौरा पड़ने के कारण दिल्ली में हुई।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जी ने देश की उन्नति और विकास के लिए शिक्षा को मजबूत करने का प्रयास अंतिम सांस तक किया। जिसके लिए उन्हें उनकी मृत्यु के बाद 1992 में भारत सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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