राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी Ram Prasad Bismil Biography in Hindi

इस लेख में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी (Ram Prasad Bismil Biography in Hindi) हिन्दी में आप पढ़ सकते हैं। इसमे उनका परिचय, जन्म व प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, क्रांतिकारी कार्य, फांसी की सजा, जयंती के विषय में पूरी जानकारी दी गई है।

राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी Ram Prasad Bismil Biography in Hindi

“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है”। राम प्रसाद बिस्मिल की देशभक्ति से ओतप्रोत यह कविता हर एक देश प्रेमी के मुख पर रहती है। 

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जो, कि एक महान क्रांतिकारी, साहित्यकार व कवि थे, आजादी की लड़ाई में उनका अद्वितीय योगदान रहा है। वे बेहद प्रखर व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने अपने जीते जी अंग्रेजों की नींदें उड़ा रखी थी।

मैनपुरी, काकोरी कांड जैसे बड़े संघर्षों में राम प्रसाद बिस्मिल ने हिस्सा लेकर अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता की अग्नि जलाई थी। एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्मे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने देश के लिए बलिदान मार्ग को चुना। 

कहा जाता है, कि जिस दिन पंडित जी को फांसी होने वाली थी उसके 2 दिन पहले ही उन्होंने जेल में रहकर 200 पन्नों से भी अधिक स्वयं के ऊपर एक बायोग्राफी लिख डाली। पंडित जी बेहद उत्कृष्ट लेखक थे। 

वे अपनी रचनाओं के पीछे गुप्त, राम और बिस्मिल जैसे उपनाम उपयोग करते थे। यही कारण है कि पंडित राम प्रसाद के साथ बिस्मिल शब्द जोड़ा जाता है। 

उन्होंने ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ की स्थापना की। प्रतिवर्ष 19 दिसंबर के दिन ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, रोशन सिंह इत्यादि जैसे कई क्रांतिकारियों को इसी दिन फांसी की सजा सुनाई गई थी। 

काकोरी कांड और दूसरे कई आरोपों का सहारा लेकर ब्रिटिश हुक्मरानों ने इन देश के लिए मर मिटने वाले भारत माता के सपूतों को भिन्न स्थानों पर सजाए देकर जेल में उन्हें प्रताड़ित किया। 

कहते हैं कि जिस दिन राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों को फांसी की सजा होने वाली थी, अंग्रेज इतने घबरा गए थे की उन्होंने सभी को अलग-अलग जगहों पर फांसी दी। अंग्रेजों को डर था कि जेल के बाहर इकट्ठे हुई भीड़ जरूर उन पर हमला करके अपने आदर्शों को छुड़वा लेगी। 

जीवन जीने का एक सही तरीका हम सभी को अमर क्रांतिकारियों से सीखने को मिलता है, जिन्होंने दुनिया से अलविदा लेने के बाद भी कभी भारत माता की माटी से और लोगों के विचारों से अलगाव नहीं किया, हमेशा उनके दिलों में जिंदा है।

राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म (Birth and Early Life)

11 जून 1897 के दिन उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था। 

कहा जाता है की रामप्रसाद के जन्म से पहले उनके माता पिता ने कई पूजा-पाठ और कर्मकांड करवाए थे। पुत्र प्राप्ति के लिए बेहद प्रयास करने के बाद उन्हें एक तेजस्वी संतान प्राप्त हुआ। घर में प्यार से उन्हें ‘राम’ कहकर बुलाया जाता था।

देशभक्ति के गुण रामप्रसाद के अंदर उनके माता-पिता से आए थे। कहते हैं कि उनकी मां उन्हें बचपन में देश प्रेम और शूरवीरों की कहानियां सुनाया करती थी। 

जब उनका जन्म हुआ था, तब ज्योतिषी द्वारा कुंडली अध्ययन के पश्चात यह बताया गया कि रामप्रसाद के दसों उंगलियों में एक चक्र का निशान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि बालक बहुत अल्पायु होगा। लेकिन यदि वह लंबे समय तक जीवित रहा तो चक्रवर्ती सम्राट की तरह दुनिया में जाना जाएगा। 

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की शिक्षा (Ram Prasad Bismil Education in Hindi)

राम प्रसाद के पिता श्री मुरलीधर एक विद्वान थे तथा उनकी माता भी पढ़े लिखे ब्राह्मण परिवार से थी। इसके कारण बचपन से ही रामप्रसाद की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता था। 

लेकिन उनका मन तो पढ़ाई लिखाई में नहीं बल्कि खेलकूद में रंगा रहता था। रामप्रसाद बचपन में बहुत शरारती थे और पढ़ाई ना करने के कारण उन्हें पिता से डांट भी खानी पड़ती थी। कई बार समझाने बुझाने के बाद भी वह न माने इसीलिए पिता ने  उनका दाखिला एक उर्दू विद्यालय में करवा दिया। 

जब रामप्रसाद थोड़े बड़े हुए तो उन्हें उर्दू साहित्य, गजलें, उपन्यास, ग्रंथों को पढ़ने में बेहद आनंद आने लगा। यहीं से उन्हें कविताएं लिखने में भी रुचि बढ़ गई। शुरुआत में कुसंगति के कारण उनकी आदतें बिगड़ गई थी, लेकिन जैसे-जैसे वे बड़े हुए एक सहनशील और  विवेकवान युवा बने। 

हालाकि पंडित राम प्रसाद के शिक्षा में अधिक रूचि न होने के कारण उनके स्कूल कॉलेज के बारे में अधिक जानकारी नहीं प्राप्त होती है, लेकिन डिग्री के दुनिया से अलग हटकर उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश से लेकर कई उपन्यास और साहित्य का अध्ययन किया। 

राम प्रसाद बिस्मिल के प्रमुख क्रांतिकारी कार्य (Ram Prasad Bismil Revolutionary Works in Hindi)

राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथी अब तक यह अच्छी तरह से समझ गए थे, कि अंग्रेजों से अपना हक मांगना बेवकूफी होगा।

अंग्रेज जिस तरह से भारत को लूट कर सभी कीमती चीजें विदेश ले जाया करते थे, इससे हर भारतीय का खून खौलता था। अपने अधिकार को प्राप्त करना यह प्रत्येक मानव का कर्तव्य होता है।

राम प्रसाद बिस्मिल के कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित दिए गए हैं:

मैनपुरी षडयन्त्र 

अंग्रेजों के अभद्रता पूर्ण व्यवहार और उनके साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने एक स्थानीय संगठन खड़ा किया और उसे ‘मातृदेवी’ नाम दिया। स्वामी सोमदेव से परिचय होने के कारण उनकी मुलाकात औरैया के पंडित गेंदालाल दीक्षित से हुई। 

पंडित गेंदालाल बेहद अनुभवी थे, जिन्होंने इस क्रांतिकारी संगठन को उभरने में रामप्रसाद जी की सहायता की। गेंदालाल जी ने ‘शिवाजी समिति’ नामक एक संगठन की स्थापना की, जो मातृ देवी की तरह ही क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देती थी।

दोनों ही संगठनों ने एक साथ मिलकर आगरा, मैनपुरी, इटावा तथा शाहजहांपुर इत्यादि में नौजवानों को इकट्ठा कर उन्हें शिक्षित करने और अंग्रेजों से लड़ने के लिए सक्षम बनाने का कार्य प्रारंभ कर दिया। 

वर्ष 1918 में देशवासियों के नाम संदेश नामक एक पत्रिका पंडित राम प्रसाद ने प्रकाशित किया। इस पत्रिका में उन्होंने मैनपुरी की प्रतिज्ञा शीर्षक के साथ ही कई संदेशों को भी प्रकाशित करने लगे। 

गठन में आर्थिक कमी होने के कारण राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों ने मिलकर तीन बार डकैती भी डाली। उसी साल में कांग्रेस के दिल्ली अधिवेशन के समय पुलिस बल द्वारा उनके संगठन और कार्यालयों पर छापेमारी की गई, जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल बच निकले। 

उन्होंने पुलिस से बचने के लिए मुठभेड़ के दौरान यमुना नदी में छलांग लगा दी और तैर कर वर्तमान ग्रेटर नोएडा के इलाकों वाले बीहड़ क्षेत्र में चले गए। उस समय वहां केवल कांटेदार जंगल हुआ करते थे।

मैनपुरी षडयंत्र के लिए उन पर और उनके साथियों पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फरार घोषित कर दिया गया। वहां हर जगह पुलिस क्रांतिकारियों को खोज खोज कर जेल में बंद कर रही थी। 

वहीं दूसरी तरफ पंडित जी वर्तमान नोएडा के एक छोटे से रामपुर जागीर नामक गांव में पहुंचे और वहां कई महीनों तक निर्जन जंगलों में घूम कर निवास किया। 

एच॰आर॰ए॰ का गठन 

वर्ष 1923 में कई नौजवानों ने दिल्ली में हुए कांग्रेस अधिवेशन के विफलता और अप्रभाव कारिता के कारण एक अलग क्रांतिकारी पार्टी की स्थापना का निर्णय किया। इन नौजवानों का कांग्रेस से मोहभंग हो चुका था, इसके पश्चात सभी ने मिलकर एक अलग पार्टी बनाने की नींव रखी। 

उस समय विदेश में रहकर भारत को स्वतंत्र करवाने का संघर्ष करने वाले लाला हरदयाल ने पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने यदु गोपाल मुखर्जी और शचिंद्र नाथ सान्याल से मुलाकात लेकर एक नई पार्टी और उसके अलग संविधान बनाने की सलाह दी थी। 

3 अक्टूबर 1924 के दिन कानपुर के बैठक में ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ नामक एक क्रांतिकारी पार्टी की स्थापना की गई। इनमें राम प्रसाद बिस्मिल, सचिंद्र नाथ सान्याल और योगेश चंद्र चटर्जी इत्यादि कई प्रमुख सदस्य सम्मिलित थे। 

पार्टी चलाने के लिए फंड की आवश्यकता पड़ने पर एच. आर. ए. के लोगों ने 25 दिसंबर 1924 में बमरोली में अंग्रेजों के यहां डाका डाला।

काकोरी कांड 

काकोरी कांड भारत में बेहद प्रसिद्ध क्रांतिकारी घटना थी, जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, बनवारी लाल, सचिंद्र नाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती इत्यादि कई क्रांतिकारियों ने एक साथ मिलकर सरकारी खजाने को लूटा था। 

लखनऊ के समीप काकोरी स्टेशन पडता था, जिस पर कीमती सामानों से भरा मालवाहक ट्रेन गुजरने वाली थी। 9 अगस्त 1925 के दिन पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में काकोरी डकैती को अंजाम दिया गया। 

सभी क्रांतिकारी अपने लक्ष्य में सफल हुए और उन्हें पार्टी चलाने के लिए और नए हथियार इकट्ठा करने के लिए बहुत मदद मिली। लेकिन 26 सितंबर 1925 में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल सहित कुल 40 लोगों से भी अधिक क्रांतिकारियों को काकोरी कांड के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। 

राम प्रसाद बिस्मिल का नारा

‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है’

फांसी की सजा

अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने के बाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी और अशफाक उल्ला खां पर मुकदमा चला और उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई। 

पंडित जी और अन्य क्रांतिकारियों के सहयोग में सड़कों पर हजारों लोग इकट्ठा हुए थे, जिसे देखकर अंग्रेज बेहद डर गए थे। कहीं जेल पर लोग हमला न कर दें, इसीलिए तीनों को अलग-अलग जगह फांसी देने का निश्चय किया गया। 

यह तय किया गया था कि 19 दिसंबर को तीनों को फांसी की सजा दी जाएगी। गोरखपुर में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी की सजा सुनाई जाने वाली थी। 

राम प्रसाद बिस्मिल की मृत्यु (पुण्यतिथि) Death of Ram Prasad Bismil in Hindi

लेकिन राजेंद्र लाहिड़ी को 2 दिन पहले ही 17 दिसंबर को गुप्त रूप से फांसी दे दी गई। 19 दिसंबर 1927 में गोरखपुर जेल में फांसी दी जाने से पहले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी मां से अंतिम मुलाकात ली थी।

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जयंती (Ram Prasad Bismil Jayanti)

स्वतंत्रता के महान नायकों में से एक अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती उनके जन्मदिन के अवसर पर 11 जून को हर वर्ष मनाई जाती है। केवल 30 वर्ष की छोटी आयु में देश के लिए शहीद होने वाले पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती पूरे भारत में बड़े ही गर्व से मनाई जाती है।

साहित्यिक कार्य Ram Prasad Bismil Literary Works

राम प्रसाद बिस्मिल की कविताएँ और शायरी बहुत प्रसिद्ध हैं। उनकी क्रांतिकारी भावना ही थी जिस कारण वह हमेशा औपनिवेशिक शासक से भारत की स्वतंत्रता चाहते थे यहां तक ​​कि जब वे देशभक्ति कविताएं लिखते थे तो उनके जीवन का मूल्य ही उनकी मुख्य प्रेरणा हुआ करती थी।

कविता ‘सरफरोशी की तमन्ना’ सबसे प्रसिद्ध कविता है इसका श्रेय राम प्रसाद बिस्मिल को जाता है, हालांकि कई लोग राय देते हैं कि कविता मूल रूप से बिस्मिल अजीमबादी ने लिखी थी।

जब वह काकोरी कांड के मुख्य क्रांतिकारी घटना में अभियोग के बाद जेल में थे, तब पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा लिखी थी।

राम प्रसाद बिस्मिल की किताबें (Ram Prasad Bismil Books)

  • आत्मकथा: निज जीवन की एक छटा (राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा हिंदी में)
  • मैनपुरी की प्रतिज्ञा (1918)
  • सरफरोशी की तमन्ना (1920)
  • मन की लहर (1921)
  • क्रांति गीतांजलि (1925)
  • अमेरिका की स्वतंत्रता का इतिहास (1916)

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की कुछ कविताएं व शायरी (Poems and Shayaris)

1. चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है
चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?
कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो 
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है 
साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा 
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है 
दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद 
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है 
बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना 
‘बिस्मिल’ अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है 

2. सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं
सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !
नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?

3. इलाही ख़ैर वो हरदम नई बेदाद करते हैँ
इलाही ख़ैर वो हरदम नई बेदाद करते हैँ
हमेँ तोहमत लगाते हैँ जो हम फरियाद करते हैँ
ये कह कहकर बसर की उम्र हमने क़ैदे उल्फत मेँ
वो अब आज़ाद करते हैँ वो अब आज़ाद करते हैँ
सितम ऐसा नहीँ देखा जफ़ा ऐसी नहीँ देखी
वो चुप रहने को कहते हैँ जो हम फरियाद करते हैँ

4. ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो ।
ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो ।
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कान्तिमय हो ।।
अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में,
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो ।
तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो ।।
तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो ।।
वह भक्ति दे कि ‘बिस्मिल’ सुख में तुझे न भूले,
वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो ।।

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